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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2790
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- सकारात्मक मनोविज्ञान की प्राच्य (पूर्वी) एवं पाश्चात्य (पश्चिमी) दृष्टिकोण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।

उत्तर-

सकारात्मक मनोविज्ञान का पूर्वी दृष्टिकोण
(Eastern Perspective on Positive Psychology)

पूर्वी संस्कृतियाँ मानती है कि 'सर्वोत्कृष्ट जीवन अनुभव' एक प्रकार की आध्यात्मिक यात्रा है। जिसमें उत्कृष्टता एवं ज्ञानोदय (Transcendence and Enlightenment) को सम्मिलित किया गया है। यह आध्यात्मिक उत्कृष्टता की खोज पृथ्वी पर बेहतर जीवन के लिए पश्चिमी मत द्वारा समर्थन किये गये उम्मीदजन्य तलाश के समान है।

पूर्वी दृष्टिकोण में जीवन के चक्र के साथ आगे बढ़ना और आत्मज्ञान की ओर बढ़ना शामिल है। पूर्वी लोग आध्यात्मिक स्तर तक बढ़ने के लिए मानवीय और भौतिक स्तर को पार करना चाहते हैं।

पूर्वी दृष्टिकोण में कन्फ्यूशियसवाद, ताओवाद, बौद्ध धर्म और इस्लाम जैसे पूर्वी चिन्तन में उपलब्ध विचार कल्याण, समुचित जीवन और सद्गुणों के संप्रत्ययों को समझने में योगदान देते हैं। कन्फ्यूशियनिज्म (Confucianism) कन्फ्यूशियस या इसे कभी-कभी मुनि या ज्ञानी (Sage) भी कहा जाता है। इनका मानना है कि नेतृत्व तथा शिक्षा नैतिकता के केन्द्र हैं। कन्फ्यूशियस शिक्षाओं का मूल सद्गुणों की प्राप्ति है। अस्तित्व में रहने के लिए नैतिकता को केन्द्र समझा गया है। इसके अनुयायियों को बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लेने के लिए सद्गुणों को आधार मानते हुए प्रयास करने चाहिए तथा साथ ही उनके प्रति सत्यनिष्ठ होना चाहिए। इन गुणों के लिए निरन्तर किये गये प्रयास कन्फूयशी अनुयायियों को आत्मज्ञान या एक अच्छे जीवन की ओर ले जाते हैं।

तायोइज्म (Taoism) तायोइज्म परम्परा के प्रणेता लाओटिज्म (Lao Tzu) थे। इनका मानना है कि लाओ एक ऊर्जा या शक्ति है जो चारों ओर प्रत्येक वस्तु में बहती है तथा दिशा, गतिविधि विधि तथा विचार के साथ सम्बन्धित है। यह शक्ति सर्वव्यापक रूप में सभी में विद्यमान है। यह एक ऐसी शक्ति है जो सभी वस्तुओं को चारों ओर से घेरे रहती है तथा प्रवाहित होती रहती है।

बौद्धवाद (Buddism) - दूसरों में अच्छाइयों की खोज करना बुद्ध की शिक्षाओं की देन है जो व्यक्ति को ज्ञानोदय की ओर ले जाती है साथ ही दूसरों पर नियन्त्रण रखने में भी मदद करती है। बुद्ध ने लिखा है कि "दूसरों के दुख एवं दूसरों की प्रसन्नता को अपना मानो एवं कल्याण की भावना में लिप्त रहो।"बुद्ध की शिक्षाओं में 'कष्ट' (Suffering) जीवन का हिस्सा है तथा ये कष्ट तीव्र इच्छाओं के मानव संवेगों द्वारा उत्पन्न होते हैं। बौद्ध विचारधारा के अनुसार जब तक लालसा व्यक्ति में विद्यमान रहती है सच्ची शान्ति का अनुभव नहीं किया जा सकता है और शान्ति के बिना ऐसा अस्तित्व ही दुख माना गया है इस दुख को केवल निर्वाण की स्थिति में पहुँचकर ही कम किया जा सकता है, जो कि बौद्ध दर्शन का अन्तिम लक्ष्य है।

हिन्दुत्ववाद (Hinduism) - हिन्दू परम्परा की मुख्य शिक्षायें इस बात पर बल देती हैं कि सभी वस्तुयें एक-दूसरे से अर्न्तसंबन्धित हैं। उपनिषद् में कहा गया है, "एक व्यक्ति अपने अच्छे कर्मों से अच्छा बनता है तथा बुरे कर्मों से बुरा बनता है।"अच्छे कर्मों को इस प्रकार से प्रोत्साहित किया गया है कि यदि एक व्यक्ति अपने जीवन में आत्मज्ञान तक नहीं पहुँच पाता तो उसे मृत्यु के बाद पुर्नजन्म द्वारा पृथ्वी पर फिर से आना होगा ताकि वह इस जीवन अपने अच्छे कर्मों के कारण अच्छा स्थान प्राप्त कर सके, यह प्रक्रिया ही कर्म कहलाती है। हिन्दू परम्परा के अनुसार, जो व्यक्ति निरन्तर ज्ञान प्राप्ति की खोज में संलग्न रहता है तथा जो निरन्तर अच्छे कर्म कर रहा है, उसे ही अच्छा जीवन मिलता है अर्थात् व्यक्ति अपने अच्छे कर्मों से ही अच्छा बन सकता है।

सकारात्मक मनोविज्ञान का पश्चिमी दृष्टिकोण / परिप्रेक्ष्य
(Western Prespective on Positive Psychology)

पश्चिमी संस्कृतियाँ इष्टतम कार्य प्रणाली पर जोर देती है क्योंकि यह अंतः -मनोवैज्ञानिक रूप में होती है। पश्चिमी लोग भौतिक संसार में पुरस्कार की तलाश करते हैं। पश्चिमी सभ्यता में उम्मीद को एक शक्तिशाली ऊर्जा के रूप में वर्णित किया गया है। इनका मानना है कि उम्मीद व्यक्ति के लिए एक प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है लक्ष्य केन्द्रित चिन्तन में लिप्त करती है और जिसकी सम्भावना अनन्त है। हमारी सभ्यता के विभिन्न युगों एवं घटनाओं के ढाँचे में उम्मीद इस प्रकार मिश्रित है कि उसे अलग करना मुश्किल है। इस सम्बन्ध में सकारात्मक धारणायें भविष्य में हमारे दैनिक विचारों एवं शब्दों में प्रतिबिम्बित होते हैं। उदाहरण के लिए 'योजना एवं विश्वास जैसे शब्द समय- रेखा की लम्बाई के ढाँचे में बंधकर निश्चित मान्यताओं को आगे बढ़ाते हुए व्यक्ति का विस्तार करते हैं।

इससे यह सम्भावना बनी रहती है कि हमारे कार्यों का भविष्य की घटनाओं पर सकारात्मक प्रभाव होगा।

 

पश्चिमी सभ्यता में धार्मिक उम्मीद
(Religious Hope in Western Civilization)

पश्चिमी सभ्यता का इतिहास यहूदी एवं ईसाइयों से जुड़ी हुई है। पश्चिमी सभ्यता को आरम्भिक समय में उम्मीद की उपस्थिति का बाईबल के एक अंश में स्पष्ट उदाहरण है कि "राजा आयेगा तुम्हारा काम होगा"। इसका तात्पर्य है कि प्रभावशाली मानव प्रयास उम्मीदमय मनोदशा का परिणाम है।

पुर्नजागरण काल जिसमें प्राचीन यूनान एवं रोम के विचारों और संस्कृति के लोगों की रुचि जाग्रत हुई और उन्होंने अपनी कला, साहित्य इत्यादि में उसका उपयोग किया।

पुर्नजागरण के बाद पश्चिमी सभ्यता के बारे में सकारात्मक विश्वास तथा उम्मीद से जुड़े मुद्दे सशक्त हुए हैं। इसके पश्चात् ज्ञानोदय युग में ज्ञानोदय चिन्तन के परिणाम लम्बे समय तक चलने वाले एक उम्मीद की शक्ति के रूप में प्रतिबिम्बित हुए। इसमें कहा गया कि वांछित लक्ष्य तक पहुँचने के लिए शिक्षा के विचारशील विश्लेषण एवं सम्बन्धित योजनाओं को बढ़ावा देना चाहिए। इसके अतिरिक्त मानव गरिमा एवं उसकी उपयुक्तता को ज्ञानोदय के दौरान पहचान मिली।

उम्मीद विश्वास है जिसके द्वारा जीवन को अभिप्रेरणाओं एवं प्रयासों के साथ-साथ अच्छा बनाया जा सकता है। अत्यधिक चाह से अधिक आकांक्षा, दिवास्वप्न उम्मीद हमारे चिन्तन को अर्थपूर्ण कार्यों में निर्लिप्त रखते हैं। पश्चिमी यूरोपियन सभ्यता की उम्मीद के मत पर कोई एकाधिकार नहीं था। प्रत्येक सभ्यता एवं ऐतिहासिक अवधि में उम्मीदजन्य विश्वास एवं क्रियायें होती हैं। लेकिन उम्मीद सभी सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में उद्वेलित विश्वास के सदृश प्रासंगिक नहीं है। उम्मीद हमारे लिए अपना संसार बनाने में मदद करती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सकारात्मक मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए इसके लक्ष्य एवं मान्यतायें / धारणायें बताइये।
  2. प्रश्न- सकारात्मक मनोविज्ञान की प्राच्य (पूर्वी) एवं पाश्चात्य (पश्चिमी) दृष्टिकोण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सकारात्मक मनोविज्ञान पूर्वी एवं पश्चिमी विचारधाराओं का संगम है। वर्णन कीजिए / प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- सकारात्मक मनोविज्ञान का अध्ययन नकारात्मक पर अधिक केन्द्रित है। स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- रुग्णता प्रारूप से आप क्या समझते हैं?
  6. प्रश्न- अच्छे जीवन के लिए सकारात्मक मनोविज्ञान का क्या महत्त्व है?
  7. प्रश्न- सकारात्मक मनोविज्ञान, मनोविज्ञान का विरोधी नहीं है। स्पष्ट कीजिये।
  8. प्रश्न- सैलिंगमैन द्वारा प्रतिपादित प्रसन्नता के तीन स्तम्भों की चर्चा कीजिये।
  9. प्रश्न- ज्ञानोदय युग विज्ञान का युग है, समझाइये।
  10. प्रश्न- कन्फ्यूशियनिज्म विचारधाराओं ने शिक्षाओं में नैतिक अस्तित्व के कौन- से सद्गुण बताये हैं? चर्चा कीजिए।
  11. प्रश्न- ताओ क्या है? ताओइज्म दर्शन के मुख्य लक्ष्य की विवेचना कीजिये।
  12. प्रश्न- हिन्दूवाद अन्य विचारधाराओं यानि कन्फूशियन, ताओइज्म एवं बौद्ध दर्शन से किन बिन्दुओं पर अपना अलग अस्तित्व रखता है? प्रकाश डालिये।
  13. प्रश्न- पूर्वी दर्शन के परिप्रेक्ष्य में सौहार्द्रता को किस प्रकार वर्णित किया गया है? समझाइये।
  14. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति पर एक लेख लिखिये।
  15. प्रश्न- सकारात्मक मनोविज्ञान में सकारात्मक संवेगों की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  16. प्रश्न- ब्रॉडन- एण्ड विल्ड (व्यापक / विस्तार व निर्मितीकरण) थ्योरी से आप क्या समझते हैं?
  17. प्रश्न- महात्मा बुद्ध ने (बौद्धवाद) सचेतता (दिमागीपन) को किस रूप में परिभाषित किया है?
  18. प्रश्न- भावदशा और संवेग के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  19. प्रश्न- संवेगों की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  20. प्रश्न- ब्रॉडन एण्ड बिल्ड सिद्धान्त के बारे में संक्षेप में लिखिए।
  21. प्रश्न- सचेतन की अवधारणा स्पष्ट कीजिये।
  22. प्रश्न- सचेतता पल दर पल अन्वेषण है, समझाइये।
  23. प्रश्न- महात्मा बुद्ध के अष्टांगी मार्ग को स्पष्ट कीजिये।
  24. प्रश्न- सचेतता (दिमागीपन) या माइंडफुलनेस के गुणों पर प्रकाश डालिए।
  25. प्रश्न- सकारात्मक संवेगों पर शोध के क्षेत्र में अग्रणी व्यक्ति कौन है? चर्चा कीजिये।
  26. प्रश्न- कर्षण (Valence) क्या है?
  27. प्रश्न- सकारात्मक संवेग अधिक संज्ञानात्मक प्रतिक्रियायें प्राप्त करते हैं। स्पष्ट कीजिये।
  28. प्रश्न- सकारात्मक संवेग किस प्रकार नकारात्मक संवेगों को पूर्ववत् करते हैं या खत्म करते हैं?
  29. प्रश्न- आध्यात्मिकता क्या है? परिभाषित कीजिये।
  30. प्रश्न- आध्यात्मिकता के लाभ बताइये।
  31. प्रश्न- जीवन संवर्धन रणनीतियों पर टिप्पणी लिखिये।
  32. प्रश्न- सकारात्मक संज्ञानात्मक अवस्थाएँ क्या हैं? मन की स्थिति को उदाहरण सहित समझाइये।
  33. प्रश्न- उम्मीद को लक्ष्य निर्देशित चिन्तन के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। समझाइये।
  34. प्रश्न- क्या उम्मीद का मापन सम्भव है? किसी दो मापनियों की चर्चा कीजिये।
  35. प्रश्न- सामूहिक उम्मीद पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- तात्कालिक भविष्य के सन्दर्भ में उम्मीद की प्रासंगिकता समझाइये।
  37. प्रश्न- 'उम्मीद' के क्या लाभ हैं? बताइये।
  38. प्रश्न- क्या उम्मीद रखना महत्त्वपूर्ण है? स्पष्ट कीजिये।
  39. प्रश्न- सैलिगमैन के अनुसार "आशावादी घटनाओं की व्याख्या अनुकूलित कारणात्मक गुणारोपण के आधार पर करता है।"समझाइये।
  40. प्रश्न- अर्जित आशावाद के बाल्यकालीन पूर्ववर्ती कारकों की चर्चा कीजिये।
  41. प्रश्न- क्या आशावाद का मापन सम्भव है? टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- प्रवृत्यात्मक आशावाद क्या है? इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति प्रत्याशा के संदर्भ में आशावाद को समझाइये।
  43. प्रश्न- आशावाद के आधार पर किन क्षेत्रों में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है? समझाइये।
  44. प्रश्न- स्वप्रभावोत्पादकता / आत्मप्रभावकारिता से क्या तात्पर्य है?
  45. प्रश्न- स्वप्रभावोत्पादकता के सन्दर्भ में सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- क्या स्वप्रभावोत्पादकता / आत्म प्रभावकारिता को मापा जा सकता है? यदि हाँ तो कुछ प्रमुख मापनियों की चर्चा कीजिये।
  47. प्रश्न- स्वप्रभावोत्पादकता का तंत्रिका जीव विज्ञान क्या है?
  48. प्रश्न- आत्म- प्रभावकारिता या स्वप्रभावोत्पादकता को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिये।
  49. प्रश्न- आत्म प्रभावकारिता / स्वप्रभावोत्पादकता के स्त्रोतों पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- लचीलापन या प्रतिस्कंदनता की अवधारणा स्पष्ट कीजिये।
  51. प्रश्न- प्रतिस्कंदनता/लचीलापन को परिभाषित कीजिये। इसके विकासात्मक दृष्टिकोण की व्याख्या कीजिये।
  52. प्रश्न- कृतज्ञता को परिभाषित कीजिये।
  53. प्रश्न- कृतज्ञता के मापन पर अपने विचार व्यक्त कीजिये।
  54. प्रश्न- कृतज्ञता के वर्द्धन में सहायक विभिन्न रणनीतियों का वर्णन कीजिये।
  55. प्रश्न- कृतज्ञता के लाभ बताइये।
  56. प्रश्न- क्षमाशीलता क्या है? क्षमाशीलता के सम्प्रत्यय को समझाइये।
  57. प्रश्न- क्षमाशीलता को मापने वाले किन्हीं दो परीक्षणों की चर्चा कीजिये।
  58. प्रश्न- क्षमाशीलता का विकास/वर्द्धन किस प्रकार सम्भव है? उल्लेख कीजिये।
  59. प्रश्न- क्षमाशीलता का स्नायु जैविक आधार क्या है? समझाइये।
  60. प्रश्न- परिस्थितियों के प्रति क्षमाशीलता पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- एवरैट् वथिंगटन के मॉडल रीच (Reach) की चर्चा कीजिये।
  62. प्रश्न- सहानुभूति को परिभाषित करते हुए इसके प्रकार बताइये।
  63. प्रश्न- परानुभूति-अभिप्रेरक एवं परानुभूति परोपकारिता परिकल्पना को विस्तार से समझाइये।
  64. प्रश्न- परानुभूति का स्नायुजैविक आधार क्या है? समझाइये।
  65. प्रश्न- परानुभूति का वर्द्धन। विकास किस प्रकार सम्भव है? उल्लेख कीजिये।
  66. प्रश्न- परानुभूति क्या है?
  67. प्रश्न- पनाज (PANAS) अनुसूची के बारे में समझाइये।
  68. प्रश्न- करुणा क्या है?
  69. प्रश्न- करुणा विकसित करने की रणनीतियों का वर्णन कीजिये।
  70. प्रश्न- करुणा की एरिक कैसेल द्वारा बताई गई आवश्यकतायें बताइये।
  71. प्रश्न- बौद्ध धर्म शिक्षा में करुणा क्या है?
  72. प्रश्न- परानुभूति एवं क्षमाशीलता एक अग्रगामी स्थिति है, स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- खुशी के वास्तविक अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- प्रसन्नता का हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  75. प्रश्न- सीखने में प्रसन्नता के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- आत्म जागरुकता के अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा इसके विकासात्मक चरणों की व्याख्या कीजिए।
  77. प्रश्न- शैशव तथा किशोर बालकों में आत्म जागरूकता के विकास से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- आत्म जागरूकता का क्या महत्त्व है? स्पष्ट कीजिए।
  79. प्रश्न- आत्म जागरूकता से होने वाले लाभ बताइये।
  80. प्रश्न- आत्म-जागरूकता को कैसे बढ़ाया जा सकता है?
  81. प्रश्न- स्व या आत्मन की भारतीय एवं पश्चिमी अवधारणा में अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- आत्म जागरूकता के विभिन्न आयाम क्या हैं स्पष्ट कीजिए।
  83. प्रश्न- आत्म जागरूकता का 'जोहरी विंडो मॉडल' को समझाइये।
  84. प्रश्न- परामर्शदाता के लिए आत्म जागरूकता के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए?
  85. प्रश्न- आत्मगत कल्याण के कौन-कौन से घटक हैं?
  86. प्रश्न- जीवन संतुष्टि एवं प्रभाव संतुलन को मापने की विधियों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- आत्मगत खैरियत "सेट प्वांइट सिद्धान्त"की व्याख्या कीजिए।
  88. प्रश्न- आत्मगत खैरियत / कल्याण के गतिशील संतुलन मॉडल से आप क्या समझते हैं?
  89. प्रश्न- व्यक्तिगत कल्याण पर सामाजिक प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- आत्मगत कल्याण पर सोशल मीडिया तथा परिवार के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- आत्मगत खैरियत तथा आर्थिक स्थिति के बीच क्या सम्बन्ध है? स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- व्यक्तिपरक कल्याण का संक्षिप्त इतिहास लिखिए।
  93. प्रश्न- प्रतिबद्धता एवं आत्मविश्वास को परिभाषित कीजिए।
  94. प्रश्न- आत्मसंयम की असफलता के कारणों की चर्चा कीजिए।
  95. प्रश्न- व्यक्तिगत जिम्मेदारी का त्रिकोणीय मॉडल समझाइये।
  96. प्रश्न- परिहार लक्ष्य (Avoidance Goals) क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  97. प्रश्न- लक्ष्य र्निलिप्तता (Goal Disengagement) पर टिप्पणी लिखिए।
  98. प्रश्न- सामाजिक क्षमता से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न दृष्टिकोणों का वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- वह कौन-कौन से कारक हैं जो सामाजिक क्षमता के विकास में योगदान करते हैं?
  100. प्रश्न- व्यवहार विश्लेषणात्मक मॉडल से आप क्या समझते हैं?
  101. प्रश्न- सामाजिक सूचना प्रसंस्करण मॉडल से आप क्या समझते हैं?
  102. प्रश्न- सामाजिक क्षमता को समझने का त्रिघटक मॉडल क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- सामाजिक क्षमता के चतुर्भुज मॉडल की व्याख्या कीजिए।
  104. प्रश्न- सामाजिक समर्थन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  105. प्रश्न- सामाजिक समर्थन के कार्य लिखिए।
  106. प्रश्न- स्पष्ट कीजिए कि सामाजिक समर्थन और अपनापन एक बुनियादी जरूरत है।
  107. प्रश्न- हैली हार्ले के ऐतिहासिक बंदर अध्ययन की विवेचना कीजिए।
  108. प्रश्न- सामाजिक सम्बन्धों में तृप्ति तथा प्रतिस्थापन के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
  109. प्रश्न- सार्थक जीवन के लिए रिश्तों का क्या महत्त्व है? स्पष्ट कीजिए।
  110. प्रश्न- नैतिक अहंभाव के अर्थ को स्पष्ट करते हुए नैतिक अहंभाव के लाभ लिखिए।
  111. प्रश्न- बोएलर के अनुसार सामाजिक क्षमता को नुकसान पहुँचाने वाले कारण लिखिए।
  112. प्रश्न- प्रसन्नता के सुखवादी दृष्टिकोण से आप क्या समझते हैं?
  113. प्रश्न- प्रसन्नता के परमानन्द दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- प्रसन्नता की 21वीं सदी की अवधारणाओं को स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रसन्नता के नवीन प्रारूप की व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- प्रसन्नता के प्रमुख सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  117. प्रश्न- वास्तविक / प्रामाणिक प्रसन्नता क्या है? परिभाषित कीजिए।
  118. प्रश्न- खुशी और जीवन संतुष्टि में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए !
  119. प्रश्न- प्रसन्नता के आनुवांशिक प्रवृत्ति सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  120. प्रश्न- मानव जीवन में प्रसन्नता को बढ़ाने के उपाय लिखिये।
  121. प्रश्न- प्रसन्न जीवन के लिए डेविड मायर्स के सुझाव लिखिए।
  122. प्रश्न- जीवन संवर्धन की रणनीतियों की चर्चा करें?
  123. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक खैरियत से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न घटकों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  124. प्रश्न- सामाजिक खैरियत का क्या अर्थ है? सामाजिक खैरियत के विभिन्न आयाम बताइये।
  125. प्रश्न- स्पष्ट कीजिए कि आत्म खैरियत प्रसन्नता का ही पर्याय है।
  126. प्रश्न- आत्मगत खैरियत के निर्धारक तत्व कौन-कौन से हैं?
  127. प्रश्न- सांवेगिक खैरियत के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
  128. प्रश्न- सांवेगिक खैरियत के प्रमुख घटक कौन-कौन से हैं?

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